सोमवार, 19 जनवरी 2009

मीना जी की एक नज़म

जिंदगी यह है

सुबह से शाम तलक
दूसरे के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कोई नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे -तस्वीर ही में भरना है
जिंदगी क्या है ,कभी कभी सोचने लगता है ये ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये ,उदासी का धुंवा ,दुख की घटा
दिल में रह -रह के ख्याल आता है
ज़िन्दगी ये है तो फिर मौत किसे कहते हैं ?
प्यार एक ख़्वाब इस ख़्वाब की ता'बीर पूछ
क्या मिली जुर्म-वफ़ा की हमें ता'बीर पूछ