शनिवार, 27 दिसंबर 2008

मीना जी की एक ग़ज़ल

आगाज़ तो होता है अंजाम नही होता

जब मेरी कहानी में वो नाम नही होता

जब जुल्फ की कालिख में गम जाए कोई राही

बदनाम सही लेकिन गुमनाम नही होता

हं -हंस के जवां दिल के हम क्यूँ चुने टुकड़े

हर शख्स की किस्मत में ईनाम नही होता

बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर

जो से पिघल जाये वो जाम नही होता

दिन डूबे है या डूबी है बारात लिए कश्ती

साहिल पे मगर कोई कोहराम नही होता

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

"मीना कुमारी की शायरी "


मीना कुमारी जितनी उच्कोटी की अदाकारा थीं उतनी ही उच्कोटी की शयारा भी थीं उनकी ग़ज़लों और नज्मों को पढ़ कर ऐसा लगता है कि कोई नसों में चुपके -चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो .गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी,वह बहुत कम लोगो में मालूम होता है .उनकी निजी डायरियां से मशहूर लेखक और फिल्मकार गुलज़ार साहब ने कुछ चुनिंदे शे'रों , ग़ज़लों ,नज़मों ,को एक किताब "मीना कुमारी कीशायरी " के मध्यम से लोगों तक पहुचने का जो सरह्नियें कम किया है वह आभार का पत्र है .मीना जी के चाहने वाले बस यहीं कहेंगे
" हाथ थम सके , पकड़ दमन ,
बड़े करीब से उठकर चला गया कोई "