शनिवार, 27 दिसंबर 2008

मीना जी की एक ग़ज़ल

आगाज़ तो होता है अंजाम नही होता

जब मेरी कहानी में वो नाम नही होता

जब जुल्फ की कालिख में गम जाए कोई राही

बदनाम सही लेकिन गुमनाम नही होता

हं -हंस के जवां दिल के हम क्यूँ चुने टुकड़े

हर शख्स की किस्मत में ईनाम नही होता

बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर

जो से पिघल जाये वो जाम नही होता

दिन डूबे है या डूबी है बारात लिए कश्ती

साहिल पे मगर कोई कोहराम नही होता

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