गुरुवार, 1 जनवरी 2009

अमृता प्रीतम की याद में.....

जब मैं तेरा गीत लिखने लगी ...

मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं

दिल के घाट पर मेला जुड़ा ,
ज्यूँ रातें रेशम की परियां
पाँत बाँध कर आई......

जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
काग़ज़ के उपर उभर आयीं
केसर की लकीरें

सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गयी,
हमारी दोनो की तकदीरें

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रात कुडी ने दावत दी,
सितारों के चावल फाटक पर
यह डेग किसने चढा दी

चाँद की सुराही कौन लाया
चाँदनी की शराब पीकर
आकाश की आँखे गहरा गईं

धरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज टहनियों के घर
फूल मेहमान आए हैं.

आगे क्या लिखा है
अब इन तकदीरों से
कौन पूछने जाए

उम्र के काग़ज़ पर
तेरे इश्क का अंगूठा लगाया,
हिसाब कौन चुकाएगा !
किस्मत ने एक नगमा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वही नगमा गाएगा

कल्प वृक्ष की छाव में बैठ कर
कामधेनु के छलके दूध से
किसने आज तक दोनी भारी !!

हवा की आहे कौन सुने,
चलूँ .........
तकदीर बुलाने आई है !!!!!!!!

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