गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

इतिहास- निर्माण में व्यक्ति के महत्व पर डॉ. आंबेडकर के विचार


यदि महापुरुष इतिहास के निर्माता न हो, तो इसका कोई कारन नहीं कि हम उनकी ओर सिनेमा स्टारों से अधिक ध्यान दें. इस सम्बन्ध में विचारधाराएँ भिन्न- भिन्न है. कुछ लोग इस बात पर बल देते हैं कि कोई व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, वह परिस्थिति की उत्पत्ति होता है- परिस्थिति ही उसे आगे लाती है. परिस्थिति ही सब कुछ करती है वह कुछ नहीं करता. मेरा मत यह है कि ऐसा विचार रखने वाले इतिहास की गलत व्याख्या करते हैं. ऐतिहासिक परिवर्तनों के कारन के सम्बन्ध में तीन भिन्न- भिन्न मत है .


-एक ऑगस्टीनी सिद्धांत है; उसके अनुसार इतिहास दैवी योजना का प्रकटीकरण मात्र है, जिसके अधीन मानव जाति को निरंतर युद्ध और कष्टों का तब तक सामना करना पड़ता है, जब तक प्रलय- दिवस ( डे ऑफ जजमेंट ) नहीं आ जाता.

-बकलस ने यह कहा कि इतिहास का निर्माण भूगोल और पदार्थ विज्ञान ने किया है.

-और कार्ल मार्क्स ने तीसरे सिद्धांत का प्रतिपादन किया. उसके अनुसार आर्थिक सम्बन्धों के कारण इतिहास की रचना हुई.

यह तीनो सिद्धांत यह स्वीकार नहीं करते कि इतिहास महापुरुषों की जीवनी मात्र है. वास्तविकता तो यह है कि ये तीनों सिद्दांत इतिहास- निर्माण में व्यक्ति का कोई स्थान प्रदान नहीं करते.
धार्मिक विचार वालों के अतिरिक्त कोए भी ऑगस्टीनी- इतिहास सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता.

यधपि बकलस और मार्क्स के कथन का सम्बन्ध है, वे जो कुछ कहते हैं, यधपि यह सत्य है, किन्तु वह पूर्ण- सत्य नहीं है. उनकी यह प्रस्थापना बिलकुल गलत है कि निवैयक्तिक तत्व ही प्रमुख होते हैं और इतिहास निर्माण में व्यक्ति का कोई महत्त्व नहीं होता. इससे इंकार नहीं किया जा सकता की निवैयक्तिक तत्व निर्णायक होते हैं, लेकिन यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि निवैयक्तिक तत्वों का प्रभावकारी होना व्यक्ति पर निर्भर करता है. चकमक पत्थर प्रत्येक स्थान पर भले ही उपलब्ध न हो, लेकिन जहाँ वह उपलब्ध होता है उससे अग्नि तभी उत्पन्न होती है जब मनुष्य चकमक से चकमक से रगड़े.

प्रत्येक जाति, पार्टी या संस्था के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है, उसकी रुधिरवाहिनी नलिकाएँ कठोर हो जाती हैं. उसके नौजवान कल्पना शून्य हो जाते हैं, उसके वृद्ध किसी प्रकार के स्वप्न्जगत में विचरण नहीं कर पाते; तब यह ( जाति, पार्टी या संस्था ) पुरानी स्मृतियों पर जिन्दा रहती है और नैराश्य- भावना से इन स्मृतियों को फिर से स्थायी बनाने का प्रयास करती हैं.

राजनीती में जब ऐसी प्रक्रिया जड़ता की स्थिति प्राप्त कर लेती है तब हम इसे बोरबोनिज्मकी संज्ञा प्रदान करते हैं और बोरबोनका स्पष्ट लक्षण यह होता है कि इस बात के प्रति अचेतन रहने के कारण यह स्केलेशेसिस रोग से ग्रस्त है.
वह रोग से मुक्ति पाने की कोई आवश्यकता नहीं समझता. परिवर्तित और नई परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठने में असमर्थ होने के कारण वह गुजरे ज़माने का वैसे ही सहारा लेता है, जैसे कोई वृद्ध व्यक्ति सहारे के लिए अपनी जीर्ण-शीर्ण आरामकुर्सी पर लुढुक जाता है.

दुसरे प्रकार की परिस्थिति क्षयग्रस्त होने की नहीं, वरन विनाश की है. संकट के प्रत्येक अवसर पर इसकी संभावना विद्यमान रहती है. पुराने ढंग, पुरानी आदतें और पुराने विचार समाज के उत्थान और उसके पथ- प्रदर्शन में असफल रहते हैं. यदि नए प्रकार के उपाय खोजे जाएँ तो जीवित बचने की कोई सम्भावना शेष नहीं रहती. किसी भी समाज की जीवन यात्रा सरल नहीं होती. प्रत्येक समाज को पतन और विनाश की संभावनाओं की कालावधि से गुजरना होता है. कुछ समाज जीवित रहते हैं, कुछ विनिष्ट हो जाते हैं और कुछ में स्थायित्व या ठहराव आ जाता है और कुछ पतन के गर्त में चले जाते हैं. ऐसे क्यूँ होता है ? ऐसा क्या कारण है की कुछ जीवित बच जाते हैं ?
इसका कार्लइल ने एक उतर प्रस्तुत किया है. यह सम्बन्ध में उसने अपने अनोखे तर्क में लिखा है
यदि महान, बुद्धिमान और योग्य व्यक्ति उपलब्ध हों तो किसी कालाविधि को पतन का मुँह न देखना पड़े; कालावधि की अपेक्षा समझने की क्षमता हो और लक्ष्य तक ले जा सकने हेतु पथ- प्रदर्शन का सहस हो, तो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है.

मेरे विचार में यह उनके लिए निर्णायक उतर है, जो इतिहास निर्माण में व्यक्ति को कोई स्थान नहीं देना चाहते. नए साधन अपनाकर ही संकट का सामना किया जा सकता है. जहाँ नए साधनों को खोजा नहीं जा सकता, वहाँ समाज अध्: पतन का शिकार हो जाता है. समाज को सही मार्ग पर ले जाना, समय का उतरदायित्व नहीं है; यह कर्तव्य व्यक्ति का है. अतः व्यक्ति इतिहास निर्माण का प्रमुख घटक होता है तथा परिस्थितिक शक्तियाँ, चाहे वे निवैयक्तिक हों या सामाजिक, महत्वपूर्ण होते हुए भी निर्णायक नहीं होतीं.

रानाडे के 101वें जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित पुणे की दक्षिण सभा ( डकन सभा ) में दिया गया भाषण का संक्षिप्त अंश

कोई टिप्पणी नहीं: