मंगलवार, 18 मार्च 2014


मेरे बनवास की मियाद अब तो तय कर दो
जैसे राम और पांडव ने कभी काटी थी

न तो जुए में ही हारा हूँ मै पांडव की तरह 
न तो कैकयी ने बनवास मुकर्र की है 
फिर खता क्या है की एक उम्र से बेघर - बेघर 
यूँ ही आवारा फिर रहा हूँ मै 

मुझको बनना नहीं अब एक मुकम्मल आदम 
जिसकी खातिर मै घर से निकला था 
वो मेरी चाह जूनून के रास्ते से होते हुए
हवस की दहलीज लाँघ आई है

यहाँ से आगे अब आदम की कोई जात नहीं
सिर्फ आदमखोर की दुनिया दिखाई देती है

यहाँ से लौटने दो माँ मुझे बस मेरे लिए
यहाँ से लौटने दो माँ मुझे बस मेरे लिए
मेरे बनवास की मियाद अब तो तय कर दो।

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